गोरखपुर का इतिहास

गोरखपुर (Gorakhpur) शहर की ऐतिहासिक महत्व और संस्कृति का इतिहास समृद्ध रहा है। गोरखपुर का इतिहासभारत (India) एक आकर्षक कहानी की तरह पढ़ता है। प्राचीन समय में गोरखपुर के क्षेत्र में बस्तीदेवरियाआजमगढ़ और नेपाल के कुछ हिस्से शामिल थे। ये क्षेत्रजिन्हें गोरखपुर जनपद कहा जा सकता हैआर्य सभ्यता (Aryan civilization) और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

The city of Gorakhpur was an important centre of Aryan civilization. 

वैदिक लेखो (Vedic writings) के अनुसार, इस क्षेत्र पर शासन करने वाले पहले ज्ञात सम्राट इक्ष्वाकु (Iksvaku) थे जिन्होंने क्षत्रिय, सूर्य वंश (the solar dynasty) स्थापना की। इक्ष्वाकु की राजधानी अयोध्या (Ayodhya) में थी। इस वंश के कई सरे महान राजाओ ने इस क्षेत्र पर राज किया, इनमे से एक राजा राम भी थे, जो सूर्य वंश के सबसे बड़ा शासक माने जाते थे। गोरखपुर क्षेत्र आर्य संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। गोरखपुर कोशल (Koshal) के प्रसिद्ध राज्य का एक प्रभाग (division) था, जो 6 ठी शताब्दी ईसा पूर्व के सोलह महाजनपदों (mahajanpadas) में से एक था। यह क्षेत्र आर्यावर्त (Aryavart) और मध्यदेश (Madhyadesh) का भी हिस्सा था

The first known monarch who ruled over this area was Iksvaku who founded Kshatriya, the solar dynasty. 

बौद्ध धर्म (Buddhism) के संस्थापक, भगवान गौतम बुद्ध (Gautama Buddha), जिनका जन्म नेपाल (Nepal) के कपिलवस्तु (Kapilvastu) में हुआ था, ने 600 ईसा पूर्व में सत्य की खोज पर निकलने से पहले गोरखपुर के पास राप्ती (Rapti) और रोहिणी (Rohini) नदियों के संगम पर अपने राजसी वस्त्रों का त्याग किया था। बाद में राजधानी कुशीनारा में मॉल राजा, सस्तिपाल मॉल (Sastipal Mall) के प्रांगण में उनकी मृत्यु हो गई, जिसे अब कुशीनगर (Kushinagar) के नाम से जाना जाता है, आज भी कुशीनगर में इस कारण एक स्मारक (monument) है।


Gautama Buddharenounced his princely clothing at the confluence of the rivers Rapti and Rohini, near Gorakhpur, before setting out on his quest of truth in 600 BCE. 

गोरखपुर शहर जैन धर्म (Jainism) के 24 वें तीर्थंकर भगवान बुद्ध के समकालीन भगवान महावीर (Lord Mahavira) की यात्रा से भी जुड़ा हुआ है। भगवान महावीर का जन्म गोरखपुर के पास ही हुआ था।  बाद में वह अपने महापरिनिर्वाण (Mahaparinirvan) को पावा (Pava) स्थित अपने मामा के महल में ले गए, जो कुशीनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर था (पावापुरी और कुशीनारा, मॉल वंश की जुड़वां राजधानी थी जो प्राचीन भारत 16 महाजनपदों के भाग थे)। मल्ल वंश अपने संथारा (Santhagara) से लोकतांत्रिक तरीके से शासन कर रहा था और इस तरह गोरखपुर प्राचीन गण संस्कार (Gana sangha) का भी हिस्सा है। महाकाव्य महाभारत में एक उल्लेख है कि राजा युधिष्ठिर के छोटे भाई राजकुमार भीम ने गोरखपुर में संत गोरखनाथ को अपने राजसूय यज्ञ में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था।  

There is a mention in the epic Mahabharata that Prince Bhima, the younger brother of King Yudhisthira had visited Gorakhpur to invite saint Gorakhnath to attend his Rajsuuya Yagna.


चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में मगध के नंद राजवंश (Nanda Dynasty) द्वारा इक्ष्वाकु वंश पर विजय प्राप्त करने के बाद, गोरखपुर मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त और हर्ष साम्राज्यों का हिस्सा बन गया। भारत के महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का संबंध मोरिया (Moriyas) से था, जो कि एक छोटे से प्राचीन गणराज्य पिपलिवाना (Pippalivana)  के क्षत्रिय (योद्धा) थे। पिपलिवाना, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में कसया (Kasia) और नेपाल तराई के रुममंडी  (Rummindei) के बीच में स्थित हैं।  



Gorakhpur became in turn part of the MauryaShungaKushanaGupta and Harsha empires.  

मध्ययुगीन काल के दौरान, गोरखपुर प्रमुखता से आया जब थारू राजवंश (Tharu Dynasty) ने दसवीं शताब्दी (900-950 A.D.) में इस क्षेत्र पर शासन किया। यह वो समय था कि प्रसिद्ध मौसन मदन सिंह शासन किया था। बीसवीं शताब्दी तक,  जब शिव अवतारी महा योगी गुरु गोरखनाथ ने यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, गोरखपुर ने प्रसिद्धि हासिल की।



By the 12th century,Gorakhpur shot to fame when Shiv Avtari Maha Yogi Guru Gorakhnath made his appearance here. 


जब पूरा उत्तर भारत (northern India) मोहम्मद गोरी के सामने शक्तिहीन हो गया, तो गोरखपुर को भी नहीं छोड़ा गया। काफी समय तक, यह मुस्लिम शासकों के नियंत्रण में रहा। कुतुब-उद-दीन ऐबक से लेकर बहादुर शाह तक कई मुस्लिम शासकों ने इस स्थान पर शासन किया। यह सुना जाता है कि अला-उद-दीन खिलजी (1296-1316) ने गोरक्षनाथ के पुराने मंदिर (गोरखपुर के एक प्रशंसित देवता) को एक मस्जिद (mosque) में बदलने की योजना बनाई थी । हालाँकि, अकबर के राज्य के पुनर्गठन पर, गोरखपुर, अवध प्रांत के  उन पांच सिरकारस (Sirkars)  में से एक था। मुगल शासक अकबर के अधीन, यह एक महत्वपूर्ण मुस्लिम शहर और एक डिवीजन मुख्यालय था।


It is heard that Ala-ud-din Khilji (1296-1316) planned the conversion of the old temple of Goraksha, an admired deity of Gorakhpur, into a mosque. 

सन 1801 में,  अवध के नवाब द्वारा इस भूमि के हस्तांतरण (transfer of land)  ईस्ट इंडिया कंपनी (The East India company) को कर दिया था, जिससे  ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस छेत्र पर सत्ता प्राप्त की और 1803 तक, गोरखपुर शहर  से ब्रिटिश शासन का नियंत्रण हो गया। हस्तांतरण के इस बदलाव के साथ, गोरखपुर को 'जिला (DISTRICT)' का दर्जा मिल गया, और  पहले कलेक्टर श्री राउतलेज थे। 1829 में, गोरखपुर उसी नाम से एक खंड का मुख्यालय बन गया जिसमें आजमगढ़ (Azamgarh), गोरखपुर और गाजीपुर (Ghazipur) जिले शामिल थे। गोरखपुर बाद में गोरखाओं (जातीय नेपाली सैनिकों) के लिए ब्रिटिश सेना भर्ती का प्रमुख केंद्र था। 1934 में भूकंप से यह क्षतिग्रस्त हो गया था।
By the year 1803, the city of Gorakhpur was under British control. With this change of hands, Gorakhpur got its status of a 'DISTRICT'

गोरखपुर, 1857 के विद्रोह के प्रसिद्ध केंद्रों में से एक था । गोरखपुर ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement) में मदद की। भारत के स्वतंत्रता संग्राम (Freedom struggle) के इतिहास में मोड़ (Tuning point) 4 फरवरी, 1922 की 'चौरी चौरा' (Chauri Chaura) घटना के साथ शुरू हुआ। प्रदर्शनकारियों ने चौरी चौरा पुलिस स्टेशन को जला दिया जिसमे अठारह पुलिसकर्मियों की मृत्यु  हुई। इसके कारण महात्मा गांधी ने हिंसा को रोकने के लिए असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation  Movement) को बंद करने का आह्वान किया।


February 4, 1922, protesters burnt down the entire Chauri Chaura Police Station killing over eighteen policemen.This led Mahatma Gandhi to call off the Non-Cooperation Movement to put a stop to violence. 

यह उसी समय के आसपास था जब महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल को जेल में डाल दिया गया था और 19 दिसंबर, 1927 को गोरखपुर जिला जेल में मौत के घाट उतार दिया गया था। राजघाट पर उनके अंतिम संस्कार के समय लगभग 2.45 लाख लोग राप्ती नदी के तट पर मौजूद थे। उनकी आत्मकथा के अनुसार उनकी अंतिम इच्छा थी कि ब्रिटिश सरकार गिर जाए।  


Ram Prashad Bismil was imprisoned and handed the the death on December 19, 1927 in the Gorakhpur District Jail. There were around 2.45 lakhs of people present at his last rites at Rajghat, on the banks of the River rapt.

बस्ती, 1865 में गोरखपुर के क्षेत्रों से एक नया जिला बनाया गया था। गोरखपुर को 1946 में देवरिया के एक और नए जिले के रूप में विभाजित किया गया था। 1989 में गोरखपुर के तीसरे विभाजन ने महराजगंज जिले को अस्तित्व में लाया।

नाम की उत्पत्ति 

बाबा गोरखनाथ 

गोरखपुर का नाम तपस्वी गोरक्षनाथ पर है, जो 'नाथ सम्प्रदाय' के विशिष्ट संत थे। एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल 'गोरखनाथ' उसी स्थान पर उनकी श्रद्धांजलि में बनाया गया था जहाँ उन्होंने तपस्या की थी जो शहर के कई ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। गोरखपुर का मौजूदा नाम 217 साल पुराना है। 


इसके पहले नौवीं शताब्दी में भी इसे गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर ‘गोरक्षपुर’ के नाम से जाना जाता था। बाद की सदियों में शासकों की हुकूमत के साथ इस क्षेत्र का नाम भी बार-बार नाम बदलता रहा। कभी सूब-ए-सर्किया के नाम से जाना गया, कभी अख्तनगर, कभी गोरखपुर सरकार तो कभी मोअज्जमाबाद के नाम से। अंतत: अंग्रेजों ने 1801 में इसका नाम ‘गोरखपुर’ कर दिया जो नौवीं शताब्दी के ‘गोरक्षपुर’ और गुरु गोरक्षनाथ पर आधारित है।

शहरनामा’ में ‘सूब ए सर्किया’ का जिक्र पिछले साल आई साहित्यकार डा. वेदप्रकाश पांडेय द्वारा सम्पादित किताब ‘शहरनामा’ के अनुसार मुगलकाल में जब जौनपुर में सर्की शासक हुए तो इसका नाम बदलकर सूब-ए-सर्किया कर दिया गया। एक समय में इसका नाम अख्तरनगर भी था। फिर वह दौर आया जब इसे गोरखपुर सरकार कहा गया। 
औरंगजेब के बेटे के नाम पर हुआ मोअज्जमाबाद औरंगजेब के शासन (1658-1707) के दौरान इसका नाम मोअज्जमाबाद पड़ा। औरंगजेब का बेटा मुअज्जम यहां शिकार के लिए आया था। वह कुछ वक्त तक यहां ठहरा। उसी के नाम पर शहर का नाम मोअज्जमाबाद कर दिया गया।
बुद्ध से पहले रामग्राम, मौर्यकाल में पिप्पलीवन गोरखपुर विवि के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.राजवंत राव के अनुसार जहां रामगढ़झील है वहां 2600 साल पहले रामग्राम हुआ करता था। यह कोलियों की राजधानी थी। भौगोलिक आपदा के चलते रामग्राम धंसकर झील में बदल गया। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में इस क्षेत्र को पिप्पलिवन के नाम से भी जाना गया। गुरु गोरक्षनाथ के बढ़ते प्रभाव के चलते नौवीं शताब्दी में इसका नाम गोरक्षपुर हुआ। 


कब रहा कौन सा नाम-
रामग्राम,                         छठवीं शताबदी ईसा पूर्व 
पिप्पलीवन                        तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व 
गोरक्षपुर                            नौवीं शताब्दी
सूब-ए-सर्किया                   13 वीं, 14 वीं शताब्दी 
अख्तरनगर                        14 वीं शताब्दी के बाद किसी कालखंड में 
गोरखपुर सरकार              17 वीं शताब्दी से पूर्व किसी कालखंड में
मोअज्जमाबाद                   17 वीं शताब्दी 
गोरखपुर                          1801 से अब तक